Thursday 27 February 2014

सुश्री ममता बॅनर्जी को समर्थन के बारे मे भूमिका...


27 फरवरी 2014

मेरे आजतक के सार्वजनिक जीवन में मैने किसी भी राजनैतिक दल का खुले आम समर्थन नही किया। इसलिये यह स्वाभाविक है की सुश्री ममता बॅनर्जी को मेरे समर्थन को लेकर सार्वजनिक तौर पर चर्चा हो रही है I राजनैतिक दल संविधान का हिस्सा नही है यह मेरी भूमिका रही है, फिर इस बार क्या कारण है की मैने इस प्रकार के दलीय समर्थन को ठीक समझा?
मै यह समझ रहा हुं कि, २०१४ के आम चुनाव बदलाव की घडी है I समुचे देशमें दिन-ब-दिन बढते भ्रष्टाचार, महंगाई, अन्याय, अत्याचार की बढती घटनाओं से तंग आ चुकी जनता अब परिवर्तन का बेसब्रीसे इंतजार कर रही है I इस स्थिती मे जहां विशिष्ट राजनैतिक दल ही बार बार सत्ता हासिल कर रहे है। परिवर्तन संभव नही हो पा रहा है। इसलिये पुरे देश में जनता इस पर गंभीरता से विचार कर रही है कि कैसे वैकल्पिक राजनीती को लोगों की राजनीती के रूप में प्रस्थापित किया जाये।  देश भर के मतदाता ने अगर बदलाव की ठान ली तो बदलाव सहज संभव है I हमे उसी दिशा में प्रयास करने होंगे।
लोक-राजनीती को मजबूत करने हेतू मैने १७ मुद्दों को लेकर बना ‘जनता का अजेंडा’ राजनैतिक दलों को भेज दिया था और दलों से अपील की थी की इन १७ मुद्दों का अमल करने पर वह अपनी प्रतिबद्धता सार्वजनिक रूपसे जनता को बतायेंमुझे पुरी तरह विश्वास है की यह १७ मुद्दे जनता कि दृष्टीसे अहम मुद्दे है मै स्पष्ट करना चाहता हुं की सुश्री ममता बॅनर्जी के तृणमूल कॉंग्रेस के अलावा दुसरे किसीभी दल ने इसपर कोई जवाब नही दिया सुश्री ममता बॅनर्जी ने मुझे पत्र लिख कर आश्वस्त किया की उनकी पार्टी इन सभी मुद्दोको अमल में लायेगी
मै जानता हुं की सुश्री ममता बॅनर्जी अपनी पुरी उम्र भ्रष्टाचार के खिलाफ लडती आयी है अपनी राजनैतिक भूमिका को उन्होने प्रामाणिकता से निभाया हैबतौर मुख्यमंत्री, सरकारी बंगला नही लिया अपने छोटे से घर मे सादगी के साथ रहती है खादी पहनती है अन्याय और अत्याचार के खिलाफ लगातार लड रही हैपुलीस की लाठीया झेल चुकी है मुझे लगता है इस प्रकार का त्याग समाज और राष्ट्र के लिये महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है देश का नेतृत्व ऐसेही नेताओं को करना चाहिये ऐसा मेरा मानना है इसीलिये मैने उनका समर्थन किया यह समर्थन आनेवाले आम चुनावों के लिये ही सीमित है मैने भी अपना जीवन समाज और देश के हित में समर्पित किया है इसलिये मै उनके विचारोंसे सहमत हुं देश मे परिवर्तन लाने के संबंधी उनके विचार मुझे महत्वपूर्ण लगते है
 महात्मा गांधी का मानना था कि, देश की अर्थव्यवस्था में बदलाव लाना है तो गांव को ही मुख्य घटक समझ जाना चाहिये एवं पानी, जमीन जैसे प्राकृतिक संसाधानों का उचित नियोजन किया जाना चाहिये कृषी क्षेत्र से उत्पादन को बढावा दे कर कृषी आधारित उद्योगों को गांव मे प्रस्थापित किया जाना चाहिये इस से गावों से लोगों का शहरो मे रोजी रोटी के लिये आना कम होगा रोजगार की समस्या को गांव में ही हल किया जा सकता है गांधीजी कहते थे कि गावों की अर्थव्यवस्था में परिवर्तन ही देश कि अर्थव्यवस्था में परिवर्तन होगा मुझे लगता है की ममताजी इसी विचार को लेकर अपनी राजनीती कर रही है स्वतंत्रता के बाद हम ने बाजारीकरण को विकृत रुपसे अपनाया नतीजन देश की अर्थ व्यवस्था गहरे संकट में आ पडी है
बडी बडी मल्टी नैशनल कंपनियों ने एवं भारत के कॉर्पोरेट क्षेत्र ने देश की जल-जमीन-जंगल पर अपना कब्जा जमा लिया  किसानों से जबरदस्ती से जमीन छीन ली विरोध करनेवाले किसानों पर गोलिया चलाई इसको प्रजा तंत्र नही कहां जाता उद्योग क्षेत्र के मुठठीभर लोग देश चला रहे है प्राकृतिक संसाधानों का निजीकरण किया जा रहा है और प्रकृती का बेहद शोषण किया जा रहा है इस पर ममता-दीदी का चिंतन और विचार मेरे विचारो से मिलते है I मैने मात्र व्यक्ती ममता बॅनर्जी या उनकी पार्टी का समर्थन नही किया, उनके विचार एवं राष्ट्रीय भावना पर गौर करके उनका समर्थन किया है
आज तक हमारे देश के राजनैतिक दल सिर्फ सत्ता के परिवर्तन मे रुची रखते आये है; किंतु समग्र परिवर्तन किसी का अजेंडा नही रहा पश्चिम बंगाल में ममता दीदीने जो काम किया वह पुरे देश मे होना चाहिये तब जाके देश मे परिवर्तन होगा ऐसा मेरा मानना है अगर अन्य दलोंमे समग्र व्यवस्था परिवर्तन के लिये आस्था होती तो शायद वह मेरे १७ मुद्दोंका खुला समर्थन करते लेकिन अन्य किसी भी दलनें इस प्रकार की कोई भूमिका नही ली
इन १७ मुद्दोंका पत्र मैने अरविंद केजरीवाल को भी दिया था  अगर वो भी इन मुद्दोंसे सहमती दर्शाते है तो मै उनका भी समर्थन करूंगा ऐसा मैने उनसे कहां था। किंतु इस विषय मे उनका कोई रीस्पोंस मुझे प्राप्त नही हुवा इससे स्पष्ट है कि देश से ज्यादा सत्ता का विचार उनके मन मे प्रबल है इस प्रकार की सत्ता देश को उज्वल भविष्य नही दे सकती एवं उनकी पार्टी और अन्य पार्टीयोंमे कोई अंतर है ऐसा नही माना जा सकता, ऐसी मेरी धारणा है
        
        भवदीय,


   कि.बा.तथा अण्णा हजारे 

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