Monday 2 March 2015

भूमि अधिग्रहण बिल के विरोध में वर्धा के सेवाग्राम से दिल्ली पदयात्रा और रामलीला मैदान पर जेल भरो आन्दोलन

भूमि अधिग्रहण पुनर्वास व पुनर्व्यवस्थापन में उचित मुआवजा तथा पारदर्शिता कानून 2013 (संक्षेप में भूमि अधिग्रहण कानून-2013) यह बिल सन्‌ 2013 में संसद में रखा गया जब कॉंग्रेस सरकार सत्तासीन थी और भाजपा विपक्ष में थी। सत्ताधारी और विपक्ष दोनों ने सहमति से तब उसे पारित किया था। उस व़क्त भाजपा ने उसका विरोध नहीं किया था। संसद में तब पारित बिल में जो प्रावधान थे तथा नरेन्द्र मोदी सरकार नये अध्यादेश के तहत क्या तबदीलियॉं लाना चाहती है यह इस तालिका से स्पष्ट होता है।

अ.क्र.
2013 का कानून
नया अध्यादेश
1
किसानों की ज़मीन को उद्यम क्षेत्र के लिए अधिग्रहित करने के लिए 80 फीसदी जनता की सहमति अनिवार्य। लोगों ने, लोगों के लिए, लोकसहभागिता से चलायी हुई राज्य प्रणाली यानि लोकशाही। इसी कारण से इस कानून में 80 फीसदी लोकसहभागिता अपना महत्व रखती है।
80 फीसदी सहमति को सरकार ज़रूरी नहीं मानती। अपनी मन मर्ज़ी के मुताबिक किसानों की ज़मीन को ले कर सरकार उद्यमियों को दे देंगी। यह संकेत करता है कि अब लोकशाही का गला घोंट कर अंग्रेज़ों से भी भयकारी तानाशाही लाने का ज़माना शुरु होने जा रहा है। जिन की ज़मीन है उन किसानों की सम्मति न लेना जनतन्त्र के विरोधी है।
2
जिस ज़मीन में सालाना दो या तीन फसलें ले कर राष्ट्र के अन्न उत्पादन में वृद्धि की जाती है, ऐसी ज़मीन (सिंचित ज़मीन) का उद्यम क्षेत्र के लिए अधिग्रहण नहीं किया जाएगा।       
इस प्रावधान को हटा कर अब ऊपजाऊ सिंचित भूमि भी उद्यम क्षेत्र के लिए मुहैया कराने का प्रावधान इस अध्यादेश में किया जा रहा है। कृषि प्रधान भारत देश में इस प्रकार से अपनी ख़ुद की ऊपजाऊ भूमि को गँवा बैठना किसानों के प्रति बडी ही नाइन्सा़फी है।
3
किसानों से अधिग्रहित भूमि उद्यमियों द्वारा यदि 5 वर्ष तक उपयोग में नहीं लाई गई तो 5 वर्ष के पश्चात्‌ किसान को लौटाई जाएगी।       
नये अध्यादेश में 5 वर्ष का बन्धन हटा दिया गया है। अधिग्रहित ज़मीन अब नहीं लौटाई जाएगी। उद्यम प्रकल्प खडा होने तक ज़मीन सरकार के या उद्यमियों के क़ब्ज़े में रहेगी, चाहे जितना समय लगे, कोई समय सीमा नहीं है।
4
यदि किसान की ज़मीन सरकार द्वारा ज़बरन्‌ अधिग्रहित की गई हो तो इन्सा़फ की गुहार लगाने हेतु इस कानून के मुताबिक किसान न्यायपालिका में फरियाद कर सकता था।       
किसान की ज़मीन उद्यम क्षेत्र के लिए ज़बरन्‌ अधिग्रहित की गई हो तो सम्बन्धित अ़फसर के ख़िला़फ न्यायपालिका में मुक़दमा करने के लिए सरकार की पूर्व सम्मति लेनी पडेगी। इन्सा़फ मॉंगने हेतु न्यायपालिका जाने का रास्ता बन्द करने का सा़फ मतलब है अंग्रेज़ों से भी भयकारी तानाशाही का आना। फर्क़ ही क्या रहा अंग्रेज़ों की तानाशाही में और इस सरकार में?
5
यह प्रावधान रखा गया था कि किसानों की भूमि का अधिग्रहण करने के पूर्व जन सुनवाई कराई जाए ता कि सामाजिक प्रभाव का आकलन हो पाए।       
उद्यम क्षेत्र के लिए किसानों की भूमि अधिग्रहण के लिए पूर्व जन सुनवाई अब ग़ैरज़रूरी। अब सरकार उसे आवश्यक नहीं मानती। जनतन्त्र का गला घोंट देने वाला तरीक़ा है यह।
6
निजि स्कूल, शिक्षा संस्थान, निजि अस्पताल या बेघरों के लिए घर बनाने हेतु किसानों की ज़मीन देने का प्रावधान नहीं था।       
निजि स्कूल, शिक्षा संस्थान, निजि अस्पताल या बेघरों के लिए घर बनाना, राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे आकर्षक शीर्षकों के नाम पर किसानों की ज़मीनें ले कर निजि संस्थानों को सौंपने का मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है। कानून का सहारा ले कर किसानों की भूमि पर ज़बरन्‌ क़ब्ज़ा कर, कहीं अपने नजदीकी कार्यकर्ताओं या उद्यमियों को उपलब्ध कराने की चाल तो इन सबके पीछे नहीं है? इस अध्यादेश के कारण भू मा़िफयाओं के द्वारा किसानों पर ज़ुल्म और अत्याचार बढने की सम्भावना है जो कि मुम्बई जैसे कई शहरों में होते रहे हैं।

सत्तासीन होने के पूर्व नरेन्द्र मोदी जी समय समय पर गुहार लगाते रहे कि जन सहभागिता के बग़ैर सच्चा लोकतन्त्र सम्भव नहीं है। लेकिन भूमि अधिग्रहण के बारे में जन सहभागिता, लोक सम्मति को ग़ैर ज़रूरी क़रार दे कर अपनी मर्ज़ी से किसानों की ज़मीनें लेने पर सरकार आमादा है। किसानों के विरोध में अध्यादेश निकाल कर किसानों के प्रति नाइन्सा़फी कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी जी की कथनी और करनी में बडा ही फर्क़ आने लगा है।
      इस नाइन्सा़फी के ख़िला़फ दिल्ली में जन्तर मन्तर और संसद भवन मार्ग पर देश के विभिन्न राज्यों के किसान एवं उनके संगठनों ने 23, 2425 फरवरी 2015 को व्यापक प्रदर्शन किए। नरेन्द्र मोदी जी की सरकार को जनता को आश्वासित करना पडा कि यदि अध्यादेश में किसानों पर अन्याय हो रहा हो तो हम उसे बदलेंगे और अब अध्यादेश के एवज में मोदी सरकार ने नया बिल बनाया है। मगर इस नये बिल को देखने पर पता चलता है कि पूर्व प्रस्तावित अध्यादेश में और इस बिल में कुछ फर्क़ ही नहीं है। बस नया बिल ले आए और जनता को भ्रमित कर दिया।
      स्वाधीन भारत के 68 वर्ष पूरे होने पर भी कृषि ऊपज को उत्पादन व्यय के अनुपात में उचित दाम न मिलने के कारण किसान आत्महत्या कर रहे हैं। इस प्रस्तावित बिल का यदि कानून बनता है तो किसानों की आत्महत्याएं बढने की ही सम्भावना है। साथ ही इस देश के किसान और सरकार के बीच संघर्ष पनपने की भी सम्भावना है। इसी लिए सरकार के लिए ज़रूरी बनता है कि सामंजस्य का अवलम्ब करे व इस बिल में किसान के प्रति नाइसा़फी ना हो ऐसा निर्णय करे।
      बारम्बार श्री मोदी जी कहते आए हैं कि बिना लोक सहभागिता के सच्चा लोकतन्त्र सम्भव नहीं है। तो फिर इसके लिए ग्राम सभा को ज़्यादा अधिकार दिलाने वाला कानून बनना ज़रूरी है। लेकिन इसके लिए मोदी जी की सरकार राज़ी नहीं है। गॉंव के जल, जंगल, ज़मीन, पानी इन संसाधनों पर गॉंव का अधिकार है। गॉंव की कोई भी चीज़ भारत सरकार या राज्य सरकार को लेनी हो तो बिना ग्राम सभा की इजाज़त से नहीं ली जा सकती ऐसे कानून का बनना ज़रूरी है। यदि ऐसा कानून बन पाया तो तभी लोकतन्त्र पनपेगा।
स्वाधीनता के 68 वर्षों में देश की ज़मीन का सर्वेक्षण तक नहीं हो पाया। सर्वेक्षण करा कर भूमि की 1/2/3/4/5/6 श्रेणियॉं बनाई जायें। फिर कानून बनें कि केवल श्रेणी 4/5/6 की भूमि ही अधिग्रहित की जा सकती है। श्रेणी 1/2/3 की ज़मीन उद्यम के लिए अधिग्रहित नहीं होगी। यदि ऐसा प्रावधान बने तो भूमि अधिग्रहण के मसअले को सुलझाया जा सकता है। लेकिन उद्योजक और सरकार तो शहरों की आस पास वाली ज़मीनों पर नज़र लगाए बैठी हैं।
कृषि प्रधान भारत देश में किसानों के हित को प्रधानता देना ज़रूरी है। उद्यमियों को यदि ज़मीन देनी है तो क्यों न किराये पर दी जाए? उस ज़मीन पर जो उद्यम शुरु होंगे क्यों न उनमें किसानों को भी शामिल करें या साझेदारी दें ता कि उनकी आमदनी बढे और वह आत्महत्या करने को मजबूर न हो? इससे सामाजिक, आर्थिक विषमता नहीं बढेगी, जिस ओर हमारा संविधान संकेत करता है। हालॉं कि आज गरीब और गरीब होते जा रहे हैं और अमीर और अधिक सम्पन्न।
किसानों पर नाइन्सा़फी का कहर ढाने वाले इस बिल के विषय में लोकशिक्षण व जनजागरण करने तथा इस बिल का विरोध करने के मक़सद से कुछ किसान संगठनों से मशविरा करने पर यह निश्चित हुआ है कि गांधी आश्रम, सेवाग्राम, वर्धा से ले कर दिल्ली तक पदयात्रा का आयोजन किया जाए। सरकार के किसान विरोधी रवैये के बारे में स्थान स्थान पर लोकशिक्षा व जन जागरण करती यह पदयात्रा करीब ढाई- तीन महीने में दिल्ली पहुंचेगी। दिल्ली पहुंचने पर रामलीला मैदान में जेल भरो आन्दोलन करने का इरादा है। सेवाग्राम में 9 मार्च 2015 में बैठक के बाद में पदयात्रा की आन्दोलन की तारीखें निश्चित की जाएंगी।
      पूरे देश भर के किसानों से अपील है कि दिल्ली के रामलीला मैदान में जब जेल भरो आन्दोलन होगा तब देश के सभी किसान अपने अपने गॉंव, तहसील, ज़िला और राज्य में जेल भरो आन्दोलन करें। यह आन्दोलन अहिंसा व शान्तिपूर्ण तरीक़े से करना है।
      यह आन्दोलन स्वाधीनता की लडाई का ही दूसरा चरण होगा, इस लिए आन्दोलन में किसान, किसान संगठन और जनता का बडे पैमाने पर उतर आना आवश्यक है। सेवा ग्राम से ले कर दिल्ली तक की यात्रा में विभिन्न ज़िम्मेदारियॉं निभाने हेतु देश के विभिन्न किसान संगठन, स्वयं सेवी संस्थान, युवा मण्डल व कार्यकर्ता-स्वयंसेवकों को आगे आना होगा। दिन में आहार व्यवस्था, रात्रि विश्राम आदि का अनुशासित व्यवस्थापन करने वाले कार्यकर्ता गण लगेंगे। पदयात्रा के दौरान देश भर से जुडे संगठन, संस्थान, और सम्बन्धितों से पत्राचार, ईमेल, फोन सम्पर्क की ज़िम्मेदारी निभाने वाले कार्यकर्ताओं की भी आवश्यकता पडेगी। पदयात्रा के तीन माह के कार्य काल में पूरा समय देने वाले आईटी का ज्ञान रखने वाले कार्यकर्ता भी चाहिए। कार्यकर्ताओं के बिछौने व अन्य ज़रूरी सामान ढोने के लिए ट्रक तथा कुछ छोटे बडे वाहन भी लगेंगे। राष्ट्र हित के इस काम में जिससे जो भी बन पाए वह सहयोग अवश्य करें यही अनुरोध है।
सधन्यवाद

भवदीय,

कि. बा. तथा अण्णा हजारे

कार्यकर्ता गण कृपा कर निम्न पते पर सम्पर्क करें :-
भ्रष्टाचार विरोधी जन आंदोलन न्यास,
मु.पो. राळेगण सिद्धी, ता. पारनेर,
जि. अहमदनगर 414302, फोन.नं. 02488-240401
ईमेल- annahazareoffice@gmail.com
वेबसाईट-www.joinannahazare.org.in, www.annahazare.org

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