Tuesday 31 March 2015

प्रधानमंत्री मा. नरेंद्र मोदीजी को भूमि अधिग्रहण बिल के बारे में चिठ्ठी...

      महोदय,
स्वतंत्रता के बाद हमभारतवासी बडे गर्व से कहते है कि, हमारा देश कृषिप्रधान देश है। फिर भी अफ़सोस की बात है कि, स्वतंत्रता के 68 साल बाद भी इस देश का किसान ख़ुदकुशी करने पर मजबूर है। इसका कारण है कि, किसानों की समस्याओं का निवारण करने हेतु कारगर क़दम उठाने के विशेष प्रयास नही किए गये। किसानों का एकही मूल आधार है, उसकी जमीन कई पीढियों से उनके परिवार के भरण-पोषण का मूलाधार रही है।
सन 1894 में अंग्रेज़ों ने भूमि अधिग्रहण कानून इस लिए बनाया था कि, उसके तहत किसानों की भूमि पर आसानी से क़ब्ज़ा किया जा सके। उस कानून को देश की स्वतंत्रता के बाद हटाया जाना चाहिये था, मगर ऐसा नहीं हुआ। इसके चलते यूं हुआ कि, 12 वीं पंचवार्षिक योजना के आँकडों के मुताबिक पिछले 68 वर्षों में विकास के नाम पर 6 करोड लोग अपनी भूमि से हाथ धो कर विस्थापित हो बैठे हैं। उनमें से 40 प्रतिशत आदिम जन जाति के हैं। दुर्भाग्य की बात है किेे, विकास के नाम पर किसानों की जमीन अधिग्रहित की जाती है, लेकिन विस्थापित किसानों के पुनर्वास के बारे में सही कदम नही उठाए जाते। इस के कारण किसान की हालत दिनबदिन जादा खराब होती जा रहीं है। 
आप तो जानते है कि, 2013 तक अंग्रेजोंने बनाया हुआ कानून चल रहा था। यह कानून देश के किसानों के लिए अन्यायकारक था। किसानों के बडे प्रदीर्घ संघर्ष के बाद 2013 में भारतीय संसद में सर्व सम्मती से भूमी अर्जन पुनर्वास और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शकता अधिकार विधेयक 2013’ पारित किया। तब अंग्रेजों ने बनाया हुआ अन्यायकारक कानून में स्वतंत्रता के 68 साल बाद बदलाव किया गया और भारतीय किसानों को कुछ हद तक राहत मिल गई।
आप की सरकारने 2013 के भूमी अधिग्रहण कानून में बदलाव कर के 31 दिसंबर 2014 को देश की किसानों पर घोर अन्याय करनेवाला अध्यादेश जारी किया। और फिर सभी विपक्षी दलों का विरोध होते हुए भी आप की सरकार ने इस अध्यादेश को बहुमत के बल पर 10 मार्च 2015 को कुछ मामुली संशोधन लाते हुए लोकसभा मे पारित किया।
आप के इस किसान विरोधी निती के कारण देश मे चारों तरफ से किसानों की आवाज उठी। देश में जगह जगह किसान सडक पर उतर आए। सभी विपक्षी दलों के सांसदोंने भी महामहीम राष्ट्रपती जी के पास जा कर अपना विरोध जताया। देश की जनता का और सभी विपक्षी दलों का विरोध देखते हुए आप की सरकारने लोकसभा में पारित किए गए भूमि अधिग्रहण बील को राज्यसभा में पेश नही किया। 31 दिसंबर 2014 को जो अध्यादेश आपने निकाला था उसके अवधी की मर्यादा 5 अप्रील 2015 तक है। उसके पहले आप की सरकार भूमी अधिग्रहण कानून 2013 के बिल में फिर से संशोधऩ कर के दुसरा अध्यादेश निकाल रही है, ऐैसा हमे पता चला है। इसलिए 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव ना करें। अगर आप 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव करना चाहते है तो, किसानों के भलाई के लिए कुछ सुझाव आप के सरकार के विचारार्थ हम देश के किसानों की और से आपके सामने प्रस्तुत करते है।
1) सरकार यदि किसानों की भलाई की सोच रखती है तो, आज़ादी के बाद देश में ज़मीन का सर्वे (लैण्ड-मॅपींग) होना ज़रूरी है। ज़मीन के क्लास 1/2/3/4/5/6 ग्रेड बनाकर क्लास 1/2/3 ग्रेड की ज़मीनें जो उपजाऊ हैं, ऐसी ज़मीन औद्योगिक क्षेत्र के लिए संपादित नहीं की जायेगी, ऐैेसा कानून बनाना ज़रूरी है।ऐैेसा कानून होता तो आज भूमि अधिग्रहण मे कौनसी जमीन लेनी, कौनसी जमीन नहीं लेनी यह प्रश्न निर्माण नही होता।
2) संसद द्वारा पारित 2013 के कानून में यह प्रावधान था किगॉंव की ज़मीन अधिग्रहित करने से पहले निजी प्रोजेक्ट के लिए 80 फीसदी किसानों की सहमति और सार्वजनिक नीजी (पीपीपी) के लिए 70 प्रतिशत लोगों की सहमती अनिवार्य थी। यह प्रावधान कायम रखे ये हमारा सुझाव है।
3) भूमी अधिग्रहण करने से पहले सामाजिक प्रभाव के आकलन के लिए जनतांत्रिक तरीके से सुनवाई कर के सामाजिक एवं पर्यावरण परिणामोंके मुल्यांकन के बाद लोग सहमती जरुरी है। यह प्रावधान कायम रहे यह हमारा सुझाव है। क्यों कि, लोगोंका लोगोंने लोगसहभाग से चलाया तंत्र, वह लोगतंत्र हुआ।
4) प्रकल्प के लिए अधिग्रहित ज़मीन पॉंच वर्षों तक प्रस्तावित प्रकल्प के लिए उपयोग में न लाई जाने पर अथवा विकसित नहीं होने पर उक्त ज़मीन उसके मूल मालिक किसानों को लौटाने का प्रावधान जो कि सन 2013 के कानून में रखा गया था, उसे भी इस नए कानून के द्वारा आपकी सरकार ने हटाया है। पांच साल मे प्रकल्प खडा नही हुआ तो मूल मालिक की जमीन उनको वापिस करना जरुरी है। यह प्रावधान होना आवश्यक है।
5) सन 2013 के कानून में राष्ट्र के हितार्थ कुछ प्रकल्पों के लिए कुछ ख़ास रियायतें दे रखी थीं। अब इस नए कानून में जनहित के प्रकल्पों की सूचि का विस्तार कर के उसमें निजि क्षेत्र के अस्पताल, निजि शिक्षा संस्थानों के विद्यालयों का भी समावेश हुआ है। वास्तविकता यह है कि, कई अस्पताल मरीज़ों से अनाप-शनाप पैसा वसूलते हैं। वो ही बात निजि विद्यालयों की। फीस और बडी दानराशियॉं वसूलने में वे भी पीछे नहीं हैं। इस मुद्दे की सुची में निजी क्षेत्र का समावेश करना ठिक नही।
6) बढती आबादी को देखते हुए देश में पर्याप्त अनाज उत्पादन हो यह हमेशा हमारी मूलभूत राष्ट्रीय प्राथमिकता रही है। इसी कारण से खेती की ऊपजाऊ ज़मीन का अधिग्रहण रोकने हेतु 2013 के कानून में यह प्रावधान रखा गया था कि, प्रति वर्ष जिन ज़मीनों में दो या दो से अधिक फ़सलें ली जाती हों वे ज़मीनें उद्यम क्षेत्र के लिए अधिग्रहित नहीं की जाएं। इस प्रावधान को भी नए कानून में हटाया गया है। अब तो सिंचित ऊपजाऊ ज़मीन भी विकास के नाम पर उद्यम क्षेत्र को दी जाएगी। इससे किसानों की आत्महत्या और बढेगी। देश के अनाज उत्पादन पर इसका विपरीत परिनाम होगा।  इसलिए बहुफसली जमीन ग्रहण नही करनी चाहिए।
7) सन 2013 के कानून की धारा 87 के अनुसार ज़मीन अधिग्रहण में किसान के साथ यदि नाइन्साफ़ी हुई हो तो, उस अपराध में लिप्त अफसर या पदासीन व्यक्तियों पर कानूनी कार्रवाई का प्रावधान था। जो कि आप की सरकार के अध्यादेश में हटाया गया है। अब ऐसे स्थिती में उन अफसरों के विरोध में शिकायत एवं कानूनी कार्रवाई करने के लिए किसानों को सरकार की इजाज़त लेनी पडेगी। सरकार ने किसानों की हक की रक्षा करना जरुरी है। इस लिए इस में परिवर्तन करना जरुरी है।  किसानों को अपने न्याय हक के लिए रोकना ठिक नही है।
8) 2013 कानून के प्रावधान 24 जो की इस अध्यादेश के लागू होने से पहले भूमी अधिग्रहण के मुआवजे से सम्बंधित प्रावधान है। 2013 का कानून कहता है कि, अगर इस अध्यादेश के 5 साल पहले अधिग्रहित भूमि पर कब्जा नही लिया गया है, या मुआवजा नही दिया गया है तो, उसमें वापस शुरु से 2013 के कानून के अंतर्गत कार्यवाही की जायेगी इस प्रावधान में बदलाव ना करें।
9) भूमि अधिग्रहण के बाद विस्थापित किसानों के परिवार के एक सदस्य को सरकारी, गैरसरकारी और निजी उद्योमों के संस्था में नौकरी देने का प्रावधान नए कानून में रखना जरुरी है।
10) देश के नदियों के किनारों के दोनो तरफ दो किलोमीटर तक उद्यमों के लिए भूमी अधिग्रहण न किया जाए।
11) देश में सभी हायवेज और रेलमार्ग के दोनो तरफ उद्यम क्षेत्र के लिए एक किलोमीटर तक की भूमि अधिग्रहित करने का जो प्रावधान नये बील में रखा है, वह निकाल देना चाहिए।
विकास के मुद्दे को ले कर हमारा विरोध नहीं है। अगर भारत को गांधीजी के सपने का बलशाली भारत बनाना है, तो विकास की योजना तो अपनानीही पडेगी। लेकीन प्रकृति और मानवता का शोषण करते हुए जो विकास किया जाएगा वह सही शाश्वत विकास नहीं होगा। हायवेज बनेंगे, कॉरिडोर बनेंगे। इसका फायदा कुछ समित लोगों को मिलेगा। लेकिन आम आदमी और किसानों का क्या होगा? यह सोचने की बात है। क्यों कि, देश की जादा तर आबादी गांव में रहती है और खेती पर गुजारा करती है। ऐसे स्थिती में स्मार्ट सिटी के साथ साथ स्मार्ट व्हिलेज का निर्माण करना देश के हित मे होगा।
महात्मा गांधीजी के विचारों के मुताबिक गाव को मुख्य प्रशासनिक इकाई मानकर ग्रामसभा को विधायिका का अधिकार देना ज़रूरी है। क्यों कि ग्रामसभा तो स्वयंभू और सार्वभौम है। देश की ग्रामसभा, लोकसभा और विधानसभा को हर पांच साल में बदलती रहती है। लेकिन ग्रामसभा खुदकभी बदलती नहीं। हर व्यक्ति 18 साल की उमर होने पर ग्रामसभा का सदस्य बनता है, और ताउम्र ग्रामसभा का सदस्य बना रहता है। ग्रामसभा को चुना नहीं जाता, वह स्वयंभू है। इस लिए गांव की जल, जंगल, जमीन, पानी जो भी, जितनी भी गांव की साधनसंपत्ति है उसका मालिक तो गांव ही है। इसलिए भारत सरकार या राज्य सरकार को गांव की कोई भी साधनसंपत्ति यदि लेनी हो, तो ग्रामसभा की सम्मती होना ज़रूरी है। ऐसा कानून बनना चाहिये। इसी से सही लोकतंत्र संस्थापित होगा। आपकी सरकार ने भूमि अधिग्रहण बील में बदलाव करके ग्रामसभा के अधिकार को ही खत्म कर दिया है। यह लोकतंत्र के विरोधी है।
देश मे कई राज्यो में ऐसा भी हुआ है कि, किसी प्रकल्प के लिए किसानों की ज़मीन तो अधिग्रहण की गई है लेकिन 25/30/35 साल से किसानों को पुरा मुआवजा तक नहीं मिला और ना ही उनका पुनर्वास भी तो हुआ है। इस बात की अनदेखी सरकार क्यों कर रही है? कई किसान ऐसे हैं कि, जिनकी ज़मीन अधिग्रहण हुई, मकान चले गए लेकिन मुआवजा और पुनर्वास नहीं हुआ है। उन किसानों के दर्द को सरकार ने समझना ज़रूरी है। इन 68 वर्षों में सरकारों की संवेदनशीलता ही खत्म होते जा रही है। यह बात मानवता के लिए कलंक है।
भूमि अधिग्रहण बील के बारेमें हम कई लोग जो संघर्ष कर रहे है, उसके बारेमें हम पहले से कहते आए है कि, हमारा संघर्ष किसी व्यक्ती, पक्ष या पार्टी के विरोध में नही है। व्यवस्था के विरोध में संघर्ष है।
देश के सभी किसानों की ओर से आप को बिनती है कि, भूमि अधिग्रहण 2013 के कानून में बदलाव कर के आप की सरकार दुसरी बार जो अध्यादेश निकालने जा रही है, उसमें किसानों की ओर से उठाए गए मुद्दों को सम्मिलीत करना जरुरी है। यह देश के जनसंसद की इच्छा है। और आप तो जानते ही होंगे की, देश मे जनसंसद का स्थान सबसे ऊंचा है। हमे उम्मीद है कि, आप इन मुद्दोंपर गंभीरता से विचार करेंगे और भूमि अधिग्रहण बील में किसानों पर अन्याय होनेवाले मुद्दों को निकालकर किसानोंके हित में सही फैसला करेंगे।
आप ने लोकसभा चुनाव के दौरान और सत्ता में आने के बाद कई बार  गुड गव्हर्नन्स की बात की है। इसलिए अपेक्षा करते है कि, आप के कार्यालय से इस पत्र का सही जबाब मिलें।
धन्यवाद।

भवदीय,

कि. बा. तथा अण्णा हजारे

प्रति,
मा. नरेंद्र मोदीजी,
प्रधानमंत्री, भारत सरकार

राईसीना हिल, नई दिल्ली.

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